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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


विद्रोही मुंशी प्रेम चंद

इंटरमीडिएट पास होते ही मुझे फौज में एक जगह मिल गयी। उस विभाग के अफसरों में पिताजी का बड़ा मान था। मैं सार्जेन्ट हो गया और सौभाग्य से लखनऊ ही में मेरी नियुक्ति हुई। मुँहमाँगी मुराद पूरी हुई। मगर विधि-वाम कुछ और ही षडयन्त्र रच रहा था। मैं तो इस खयाल में मगन था कि कुछ दिनों में तारा मेरी होगी। उधर एक दूसरा ही गुल खिल गया। शहर के एक नामी रईस ने चचाजी से मेरे विवाह की बात छेड़ दी और आठ हजार रुपये दहेज का वचन दिया। चचाजी के मुँह से लार टपक पड़ी। सोचा, यह आशातीत रकम मिलती है, इसे क्यों छोङूँ। विमल बाबू की कन्या का विवाह कहीं-न-कहीं हो ही जायगा। उन्हें सोचकर जवाब देने का वादा करके विदा किया और विमल बाबू को बुलाकर बोले, 'आज चौधरी साहब कृष्णा की शादी की बातचीत करने आये थे। आप तो उन्हें जानते होंगे ? अच्छे रईस हैं। आठ हजार रुपये दे रहे हैं। मैंने कह दिया है,सोचकर जवाब दूंगा। आपकी क्या राय है ? यह शादी मंजूर कर लूँ ? विमल बाबू ने चकित होकर कहा, यह आप क्या फरमाते हैं ? कृष्णा की शादी तो तारा से ठीक हो चुकी है न ?'
चचा साहब ने अनजान बनकर कहा, 'यह तो मुझे आज मालूम हो रहा है। किसने ठीक की है यह शादी ? आपसे तो मुझसे इस विषय में कोई भी बातचीत नहीं हुई।'
विमल बाबू जरा गर्म होकर बोले, 'ज़ो बात आज दस-बारह साल से सुनता हूँ, क्या उसकी तसदीक भी करनी चाहिए थी ? मैं तो इसे तय समझे बैठा हूँ। मैं ही क्या, सारा मुहल्ला तय समझ रहा है।'
चचा साहब ने बदनामी के भय से जरा दबकर कहा, 'भाई साहब, हक तो यह है कि मैं जब कभी इस सम्बन्ध की चर्चा करता था, दिल्लगी के तौर पर लेकिन खैर, मैं आपको निराश नहीं करना चाहता। आप मेरे पुराने
मित्र हैं। मैं आपके साथ सब तरह की रिआयत करने को तैयार हूँ। मुझे आठ हजार मिल रहे हैं। आप मुझे सात ही हजार दीजिए छ: हजार ही दीजिए।'
विमल बाबू ने उदासीन भाव से कहा, 'आप मुझसे मजाक कर रहे हैं या सचमुच दहेज माँग रहे हैं, मुझे यकीन नहीं आता।'
चचा साहब ने माथा सिकोड़कर कहा, इसमें मजाक की तो कोई बात नहीं। मैं आपके सामने चौधरी से बातें कर सकता हूँ।'
'विमल बाबू आपने तो यह नया प्रश्न छेड़ दिया। मुझे तो स्वप्न में भी गुमान न था कि हमारे और आपके बीच में यह प्रश्न खड़ा होगा। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया है। दस-पाँच हजार में आपका कुछ न बनेगा।'
'हाँ, यह रकम मेरी सामर्थ्य से बाहर है। मैं तो आपसे दया ही की भिक्षा माँग सकता हूँ। आज दस-बारह साल से हम कृष्णा को अपना दामाद समझते आ रहे हैं। आपकी बातों से भी कई बार इसकी तसदीक हो चुकी है। कृष्णा और तारा में जो प्रेम है, वह आपसे छिपा नहीं है। ईश्वर के लिए थोड़े-से रुपयों के वास्ते कई जनों का खून न कीजिए।'

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